नज़राना इश्क़ का (भाग : 12)
निमय तेजी से जाह्नवी के पीछे भागते हुए गेट के अंदर चला गया। वह लंबे लंबे डग भरते हुए उसके बराबर चलने लगा मगर जाह्नवी ने उसकी ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया। फरी उन दोनों से थोड़ा आगे आगे चल रही थी।
"अब क्या हुआ तुझे मेरी माँ?" निमय ने हाथ जोड़ते हुए जाह्नवी के सामने खड़ा होकर बोला।
"मुझे तुझसे तो बात ही नहीं करनी, जा इतनी सारी लड़कियां हैं, सब तो मरती हैं ना तेरे से बात करने के लिए, जा सबसे बात कर ले!" जाह्नवी ने मुँह बिचकाते हुए तल्ख लहज़े में कहा और अपनी आँखे फेर ली।
"क्लियर कर ले चाहती क्या है तू? एक मिनट पहले कहती है कि किसी से बात मत कर फिर कहती है कि जा सबसे बात कर ले! मैं करूँ तो क्या करूँ ये तो बता!" निमय अपना सिर खुजाते हुए थोड़ा टेढ़ा होते हुए झुककर उसकी आंखे में झाँकते हुए बोला।
"अबे घोंचू गुस्सा हूँ मैं! समझ नहीं आता क्या?" जाह्नवी ने अपना पैर उसके पैर पर पटकते हुए कहा।
"हाए राम! मार डाला रे! अब जब कोई बताएगा नहीं तो मुझे कैसे पता चलेगा भला! मैं कोई अन्तर्यामी हूँ क्या?" निमय अपना पैर सहलाते हुए जीभ निकालकर बोला।
"वाह गजब! मैं ही गुस्सा करूँ और मैं ही बताऊँ भी? बस यही सुनने को बचा था इस दुनिया में, हे भगवान….!" जाह्नवी पैर पटकते हुए वहां से जाने लगी।
"मुझे तो लगता है ये मेरे साथ आने के लिए तैयार भी भी जासूसी करने के लिए हुई है! अपने भाई पर शक हो रहा है घोंची को…!" निमय वहीं एक किनारे बैठ गया, जाह्नवी ने उस मुड़कर देखा, उसके चेहरे पर स्माइल आ गयी, उसके गुलाबी गाल पर प्यार सा डिम्पल उभर आया। वह तेज कदमों से वापिस लौटी, निमय उसे वापिस लौटते देख उठने लगा, इससे पहले वो खड़ा हो पाता जाह्नवी ने उसके बाल खींचकर खराब कर दिए और वहां से भागने लगी।
"जा घोंचू बन ले अब हीरो! जूड़े दूं बाल बाँधने के लिये?" हँसते हुए वह तेजी से सीढ़ी की ओर भागी, निमय अपने बाल उंगलियो में फँसाकर सही करने की कोशिश करने लगा। सबसे ऊपर की सीढ़ी पर खड़ी फरी इन दोनों की नोक झोंक देख रही थी, उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान ठहर गयी थी। बाकी सबको तो इनके नोक झोंक की आदत हो गयी थी इसलिए कोई उनपर विशेष ध्यान न दे रहा था। बिगड़े हुए बालों में निमय और हैंडसम लग रहा था, उन्हें सुलझाने की उसकी सभी कोशिशें नाकाम होती जा रही थीं।
"और निम्मी! बड़ा कूल लग रहा ब्रो!" विक्रम ने हँसते हुए उसके पास आकर बोला। निमय उसको देखकर हौले से मुस्काया फिर मुँह लटका लिया।
"अब नवंबर के महीने में कूल नहीं तो क्या हॉट लगूंगा?" निमय ने मुँह बनाते हुए बोला।
"ओये…! अब जानी का गुस्सा मुझ पर क्यों उतार रहा है भाई? मैंने क्या कर दिया अब..!" विक्रम उसी की तरह मुँह बनाकर बोला।
"देख भाई मेरा मानना है कि चोट देने वाला और उसकी याद दिलाने वाला दोनो बराबर के गुनाहगार होते हैं इसी नाते….!"
"हाँ समझ गया निम्मी ब्रो! कैंटीन चल तेरा बिगड़ा हुआ मूड अब वहीं सही होगा!" विक्रम ने उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए कहा।
"अबे टाइम तो देख ले, इतने टाइम अभी कैंटीन खुला भी नहीं होगा।" निमय ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा।
"अबे हां...धत्त यार! अब तू पहले कभी दस बजे से पहले आया नहीं तो फिर… वैसे आजकल इतना समय परिवर्तन कैसे? मुझे तो यह हृदय परिवर्तन लगता है।" विक्रम ने अपना मोबाइल निकालकर टाइम देखते हुए कहा।
"अबे तुझे मेरे इस टाइम आने की पड़ी है! वो जग्गी जासूस के साथ आया हूँ मैं आज!" निमय दूसरी ओर ताकते हुए बोला।
"ये तुम दोनों एक दूसरे को कितने नाम देते हो यार एक दिन में? खुद को भी याद रहता है क्या क्या बोलते रहते हो?" विक्रम अपने सिर पर हाथ मारते हुए बोला। "एक मिनट…! तूने क्या कहा कि तू जानी के साथ आया है, मतलब तेरे बचपन की ख्वाहिश अब जाकर पूरी हो रही है..!" विक्रम खुशी से चहक उठा।
"हूँ…!" निमय के होंठो पर मुस्कान तैर गयी, उसने अपना चेहरा झुका लिया।
"वाह भाई ऐसे खुशी के मौके पर गमनीन स्पीच दे रहा था..! पार्टी चाहिए अब तो हमको..!" विक्रम किसी मासूम बच्चे की तरह खुशी से उछलते हुए बोला।
"साला तुझे तो बस बहाने चाहिए पार्टी के…!" निमय ने मुँह बनाया।
"कम से कम तेरी तरह बिना वजह तो पार्टी नहीं मांगता न..!" विक्रम ने भौंहे सिकोड़ते हुए कहा।
"चल अब क्लास में…!" निमय कदम बढ़ाते हुए बोला।
"वाह अब यही सुनने को बाकी बचा था। अच्छा हाँ! अब हृदय परिवर्तन हो रहा है तो कमाल तो होगा ही..! ओ माय गॉड फरी.. यू आर सो लकी यार..!" विक्रम उसकी ओर देखकर दांत दिखाते हुए बोला।
"अरे हाँ फरी से याद आया, पता है आज वो हमारे ही बस में आई थी, आज पहली बार उससे थोड़ी सी बात हुई…..!" खुशी से उतावला होते हुए निमय कहता गया!
"वाह भिड़ू…! देख अब तो पक्का पार्टी चाहिए। वो भी दुगुनी खुशी के नाम…!" विक्रम चीयर करते हुए दांत दिखाकर बोला।
"हाँ..! चल अब क्लास में!" कहता हुए निमय आगे बढ़ा।
"जैसा आप कहो सरकार..!" विक्रम हीही करते हुए उसके बराबर में चलने लगा।
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सभी क्लास में बैठे हुए थे, निमय और विक्रम दोस्त होने के बावजूद अलग अलग जगह बैठते थे। जाह्नवी के साथ बाकी कोई बैठने की हिम्मत नहीं करता था। फरी की सीट पर एक लड़की बैठी हुई थी, उसने बेहद कीमती हल्की सुनहली टॉप और ब्लैक जीन्स पहन रखा था, उसके हाथ में सोने का कंगन, गले में सोने की बेहद कीमती चैन! यहां तक कि उसके कानों की बाली में हीरे जड़े हुए थे। चेहरे पर एक अजब सा एटीट्यूड था, मानों जैसे वह दुनिया अपनी मुट्ठी में रखती हो। हालांकि फरी बेहद थक चुकी थी, इसलिए उसने उस लड़की और उसके लिबास पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। पर आज थके होने के बावजूद भी वह काफी खुश नजर आ रही थी, उसने अपना बैग वहाँ रखा और चुपचाप बैठने लगी।
"हे! क्या मैं यहां बैठ सकती हूँ!" पहले से ही बैठी हुई लड़की ने फरी की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा।
"जी आप तो पहले से ही बैठी हुई हैं!" फरी ने मुस्कुराकर बैठते हुए कहा।
"दिस इज़ शिक्षा! और आप तो फरी जी हैं… आपको कौन नहीं जानता। क्या मैं आपसे थोड़ी देर बात कर सकती हूँ।" उस लड़की ने बड़े मधुर स्वर में कहा। उसकी आवाज में इतनी मिठास भरी हुई थी मानो उसमें शहद की डली घुली हुई हो।
"जी कहिये..!" फरी ने सरल भाव से मुस्कुराते हुए कहा।
"कांग्रचुलेशन्स फरी! जो आजतक कोई न कर पाया था वो आपने कर दिखाया। यहां के सो कॉल्ड टॉपर्स को आपने उनकी औकात दिखा दी, मुझे तो सुनकर बहुत खुशी हुई..! मैं वैसे तो नहीं आती, मगर जब यह खबर सुनी तो बस आपसे मिलकर आपको मुबारकबाद देने चली आयी।" शिक्षा ने मुस्कुराते हुए अपने हाथ से सोने का कंगन उतारकर फरी की ओर बढ़ाते हुए कहा। "ये मेरी ओर से छोटी सी भेंट रख लो..!" शिक्षा ने गर्वित मुस्कान भरते हुए कहा, उसकी मुस्कान में छिपी कुटिलता स्पष्टया नजर आ रही थी। फरी ने उसके बढ़ते हाथ को वही रोककर वह कंगन लेने से इनकार कर दिया, सभी हैरानी से उसकी ओर देख रहे थे। शिक्षा के बेहद अमीर होने के कारण आज तक निमय और जाह्नवी के अतिरिक्त किसी और ने उसका विरोध करने की हिम्मत न दिखाई थी, बाकी सभी उसकी चापलूसी में लगे रहते थे।
"बस एक बात कहूंगी शिक्षा जी! आपको वास्तव में शिक्षा की अत्यंत आवश्यकता है। कोई भी बिना मेहनत किये कुछ नहीं बनता। आप यदि किसी से बेवजह नफरत करते हैं तो यह केवल दुःख का कारण बनता है। क्षमा करियेगा, मुझे ऐसे अशिक्षित लोगों से जो पैसों को अपना सबकुछ समझते हैं, जिनमें स्वयं को सबसे बड़ा साबित करने की होड़ मची होती है, उन्हें बधाई देने अथवा उनसे बधाई लेने का कोई शौक नहीं है।" कहते हुए फरी वहां से उठ खड़ी हुई, सभी बेहद हैरानी से उसकी ओर देखने लगे।
"तुम जानती नहीं हो मिस फरी किससे बात कर रही हो, वैसे तुमने मेरे दिल को सुकून दिया है इसलिए मैं तुम्हारी एक गलती माफ कर ही सकती हूँ। मगर अब आइंदा से शिक्षा के लिए ऐसी गिरी हुई शब्दावली का प्रयोग मत करना!" शिक्षा उसपर गुस्से से बरसते हुए चेतावनी देने के लहज़े में बोली।
"मैं जानती हूँ आप कौन हैं…!" फरी ने बड़े विन्रमता से कहना शुरू किया। "किसी बड़े रईस बाप की बेलगाम बेटी, जिसका नाम तो शिक्षा है मगर शिक्षा, संस्कार और सदाचार से दूर दूर तक कोई भी नाता नहीं है। मुझे क्षमा कीजियेगा मुझे ऐसी शब्दावली का प्रयोग करना पड़ा परन्तु आपके लिए मेरे पास इससे उपयुक्त शब्द फिलहाल नहीं हैं।" कहते हुए फरी वहां से उठकर आगे बढ़ गयी, शिक्षा उसे फाड़ खाने वाली नजरों से घूरती रही मगर फरी ने उस पर ध्यान तक नहीं दिया। शिक्षा शहर के एक बड़े अमीरजादे की बेटी थी, जिसके लिए दुनिया की कोई भी चीज उसके बाप की प्रॉपर्टी होती थी। उसके बाप ने भी बिना सोचें समझे उसे हर वो चीज दिया, जिसको उसने एक पल को भी चाहा, उसे उसके मन का करने दिया। मगर जब कॉलेज में जाह्नवी और निमय के उससे ज्यादा मार्क्स आये तो फिर उसे उन दोनों से चिढ़ मचने लगी। हालांकि निमय उसे बेहद पसंद था मगर निमय ने उससे कभी बात तक न की। और जाह्नवी का व्यवहार तो उसे सीने में ख़ंजर की तरह चुभता था, वह दिन रात पार्टी में मशगूल रहती थी मगर जब उसने सुना कि किसी ने उनसे ज्यादा मार्क्स लाये तो वह उससे मिलने कॉलेज चली आयी।
फरी ने दूसरे सीट पर जाकर बैठने की इजाजत मांगी मगर उस लड़की ने इनकार कर दिया। वह निमय के पास जा पहुँची, अपनी ओर आता देख निमय एक ओर सकरकर उसके लिए जगह बनाने लगा। फरी वहां जाकर खड़ी हो गयी और मन ही मन कुछ सोचने लगी।
"हे निमय! क्या मैं यहां बैठ सकती हूँ!" फरी ने मुस्कुराते हुए पूछा, कईयों के मना कर देने के बाद उसे बिल्कुल समझ नहीं आया कि वह क्या करे।
"ज...जी बिल्कुल फरी जी!" निमय लड़खड़ाते स्वर में स्वागत करता हुआ बोला।
"लो फिर आपका जी…!" फरी धीमें से हँसते हुए बोली, निमय कनखियों से झांकता हुआ बस एकटक उसे देखता रहा।
"क्या हुआ आपको?" फरी उसको ऐसे देखते देख शर्मा गयी।
"कुछ नहीं..! बैठ जाइए..!" निमय को जब समझ आया कि वह क्या कर रहा तो उसने झुंझलाते हुए कहा। "असहज होने की जरूरत नहीं, दरअसल मुझे लड़कियों से बात करने नहीं आता…!" निमय ने मुँह छिपाते हुए कहा।
"अरे कोई बात नहीं! वैसे आप तो फेमस हैं बहुत..!" फरी ने कहा। जाह्नवी फरी को घूर घूरकर देख रही थी, शिक्षा की आंखों में अंगार उबल रहा था, वह काफी देर तक फरी को फाड़ खाने वाली नजरों से घूरते हुए देखती रही पटकते हुए वहां से निकल गयी। तभी क्लास में प्रोफेसर आ गए..!
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शाम को…!
फरी अपने टेरिस पर टहल रही थी, बार बार उसे निमय से की गई बातें और शिक्षा की हरकतें याद आ रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो प्रॉपर क्या रिएक्ट करे। उसके हाथ में चाय का कप था, चाय का एक घूंट लेकर वह डूबते हुए सूरज को देखते हुए अपने मन में चल रहे सभी ख्यालों को बाहर निकाल देना चाहती थी।
"कभी कभी कुछ बिल्कुल भी समझ नहीं आता, कोई पराया होकर अपना सा लगता है और कोई दौलत के मद में डूबा अपनी वास्तविकता को भूल जाता है…! खैर छोड़ ना फरी, पढ़ाई पर ध्यान दे यार! इन फालतू चीजों पर ध्यान देने की कोई जरूरत नहीं!" फरी खुद की उलझन सुलझाने में लगी हुई थी। मगर फरी के दिमाग में हजारों चीज चल रही थीं, इससे पहले वो किसी बात को गहनता से सोचती उसका फ़ोन रिंग करने लगा।
'भला मुझे कौन कॉल करेगा?' सोचते हुए फरी ने अपना फ़ोन निकाला। उसपर बाबा का नाम फ़्लैश हो रहा था।
"हेलो बाबा! मैं सोच ही रही थी कि आपके अलावा कौन है जो हमें कॉल कर सकता है.., वैसे भी हमारा नंबर सिर्फ आपके ही पास है, पर ये बात हम बार बार भूल जाते हैं" फरी ने चहकते हुए कहा।
"आप कैसी हो बिटिया! कौनो परेशानी होगा तो हमको बताना!" बाबा ने बड़े प्यार से कहा।
"अरे नहीं बाबा! जिसके पास आप जैसा बाबा हो उसको भला क्या परेशानी होगी!" फरी ने हँसते हुए कहा।
"ठीक है बिटिया, अपना ख्याल रखियेगा!" कहते हुए बाबा ने फ़ोन रख दिया, उनके बात करने के लहजे से लग रहा था मानो उन्हें कुछ कहना था मगर दूसरे ख्यालों में उलझी फरी ने फिलहाल इसपर कोई ध्यान नहीं दिया।
क्रमशः….
shweta soni
29-Jul-2022 11:37 PM
Nice 👍
Reply
🤫
27-Feb-2022 01:29 PM
कहानी तो और रुचिदायक होती जा रही है पढ़ कर अच्छा लगा हमें।
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मनोज कुमार "MJ"
27-Feb-2022 08:54 PM
Bahut dhanyawad aapka 🤗
Reply
Seema Priyadarshini sahay
02-Feb-2022 04:13 PM
बहुत बढ़िया भाग।
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मनोज कुमार "MJ"
27-Feb-2022 08:54 PM
Thank you
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